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Videha_01_01_2009_Tirhuta

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िव दे ह िवदेह <strong>Videha</strong> িবেদহ िवदेह थम मैिथली ािक्षक ई िका <strong>Videha</strong> Ist MaithiliFortnightly e Magazine िवदेह थम मैिथली पािक्षक ई पिका ०१ जनवरी २००९ (वषर् २मास १३ अंक २५) http://www.videha.co.in/ मानुषीिमह संस्कृ ताम्अरिव कुमार ‘अू’ क नाटक ‘र’ (1992) मे अवैध साितक भयावहपिरणाम सँ समाजकेँ एकटा चेतावनी देल गेल अिछ। एिह घिणत ृ सामािजक िवभीिषकापर नाटककार कहेन काश दे छिथ से िथक-----िकसुनः“तोहर तँ गे अनटटेल होइछ। हौ सड◌कक कातमे गरीबक तँधिनकक ना फकेल रहतैक?” 6ि नारायण लालक नाटक ‘सत’ मे समाजक एक द ुःष्चिर ि ीका,हिरजन युवती नीलमकेँ अपन मजालमे फँसा ओकर सती भंग करैछ जािह करँओ समाजमे मुँह देखयबाक यो निह रिह जाइत अिछ। अतः कोठा परकनारकीय जीवन जीबाक लेल बा होम’ पड◌◌ैत छैक।महे म ंगिगयाक ‘लण रेखा खित’ मे सेहो एिह िवषय पर दृ िपातकयल गेल अिछ----मजः“हँ, एना सकपकेलेँ िकएक ? दरोगा सािहब इएह ओ श ैतान छी जेकतेको बेटी-पुतोहुक इस्ीकेँ लोभ आ बलाारसँ करैत आयलअिछ। गाममे हरदम एकटा एकटा उधवा मचबैते रहैत अिछ जािहसँलोक अशा ंत अिछ।” 7एिह तरहेँ कहल जा सकैछ जे आधिनक ु समाजमे नारीकेँ कहक लेल भनिहदेवी आ द ुगा र्क दजा र् देल गेल अिछ, मुदा पुषक वासना िशकार ओ कोना भ’ रहलछिथ एिह िवषय वुकेँ मैिथली नाटककार बड◌ सजीव िचण कय छिथ।94

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