Videha_01_01_2009_Tirhuta
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िव दे ह िवदेह Videha িবেদহ िवदेह थम मैिथली ािक्षक ई िका Videha Ist MaithiliFortnightly e Magazine िवदेह थम मैिथली पािक्षक ई पिका ०१ जनवरी २००९ (वषर् २मास १३ अंक २५) http://www.videha.co.in/ मानुषीिमह संस्कृ ताम्ममताः— “अहा ँ बा भैयाकेँ द ुरद ुरौ रहैत िछयिन.... लाल भैयाक लो-चो मेलागल रहै छी....जे काि ड◌ॉर बनताह तिनका छनन-मनन खोअबैतिछयिन।” 19समाजक नींव पिरवार छैक आ पिरवारक आधारिशला पित-पी। पित-पीक परर िवास, समझदारी ओ सहयोगिहसँ पिरवार सुखी भ’ सकैछ। जँ द ुन ूमेसँ एकहु ँ पंगु भ’ जायत तँ पिरवारपी गाड◌◌ीक द ुघ र्टना हेबाक संभावना बढ◌ि◌जाइत अिछ। तािह हेतु आब पुषहु ँ केँ सोच’ पड◌तैि जे नारीक संग मानिसकसमायोजन आब अंत आवक भ’ गेल अिछ।िशक्षाक ित नारीक बदलैत दृ िकोणको देश समाज अथवा जाित तावत धिर स निह ब ुझल जायत जाधिर ओिहदेश, समाज, अथवा जाितमे नारीक आदर निह हेतैक। जँ पुष देशक भुजा िथकतँ नारी दय, जँ पुष देशक हेतु दीप िथकाह तँ नारी दीपकक तेल जँ पुषारक सुरता छिथ नारी घरक काश, जँ एकक िब ार सु लागैत अिछ तँ एककिबन घर अार।वैिदक युगमे पुीक िशक्षाक ओतबे मह छल जतबा िक पुक। ऋेदमेिशिक्षत स्ी-पुषक िववाहिह केँ उपयु मानल गेल अिछ। िपता ारा काकेँ अपनपुािहक भाित ँ िशिक्षत कयल जाइत छल आ काकेँ सेहो चय र् कालसँ गुजर’पड◌◌ैत छलैक। अथव र् वेदमे िलखल छैक जे “का सुयो पित ा कर’ मेतख सफल भ’ सकैत अिछ जखन िक चय र् कालमे ओ यं सुिशिक्षत भ’ चुकलहो। कतोक नारी िशक्षाक मे महप ूण र् उपलि ा कय छलीह। एतय धिर104
िव दे ह िवदेह Videha িবেদহ िवदेह थम मैिथली ािक्षक ई िका Videha Ist MaithiliFortnightly e Magazine िवदेह थम मैिथली पािक्षक ई पिका ०१ जनवरी २००९ (वषर् २मास १३ अंक २५) http://www.videha.co.in/ मानुषीिमह संस्कृ ताम्ओ लोकिन वैिदक ऋचा धिरक रचना कय छलीह। लोपामुा, धोषा, िसकता, िनवावरी,िववारी आिद एिह कारक िवद ुषी नारी छलीह जिनक उेख ऋेदमे भेटैत अिछ।वैिदक यज्ञवादक ितियाक फलप उपिनषद्कालमे एक नव दाशिनकर्आोलनक ार भेल। ओिहमे नारीक सहयोग को कम निह छल। ऋिषयाज्ञवल्क पी मैयी परम िवद ुषी छलीह। ओ धनक अपेक्षा ज्ञान ािक कामनाबेसी करैत छलीह। ब ृहदारक उपिनषदमे उेख अिछ जे याज्ञवल्क दोसर पीकाायनीक पक्षमे अपन सितक अिधकार छोड◌ि◌ अपन पितसँ मा ज्ञानदानकाथ र्ना कएलिन। एिह तरहेँ ब ृहदारक उपिनषद ् मे सेहो िवदेहक राजा जनककसभामे गागीर् आ याज्ञवल्क म उ रीय दाशिनक र् वाद-िववादक उेख अिछ।उर वैिदक कालमे समयक गितक संगिह-संग नारी िशक्षाक मे शःशः ास होम’ लागल। काकेँ सुिवात आचाय र् ओ िस िशक्षा के धिरभेज’ मे समाजक उाह िकछु कम पड◌ि◌ गेलैक, ई िवचार बल भ’ गेल जेघरिह पर काक िपता, भाय अथवा आन को िनकट संब ंधी हुनका िशिक्षत करताह।पिरणाम प ाभािवक पसँ ओकर धािम र्क अिधकार िशक्षाक अिधकारमे ास होमलागल।कालमासारे शः शः नारीक ित पुषक बदलैत धारणाक कारँ नारीवमे अिशक्षा ा भ’ गेल। मैिथल समाजमे एखनहँ ु नारी िशक्षाकेँ अधलाह मानलजाइत अिछ। नारी जगतमे िशक्षाक अभावक कारँ ओकर म ू एको कौड◌◌ीकनिह रिह जाइत अिछ। एिह संदभर्मे ‘बसात’ केँ देखल जा सकैछ-“जे मिहला आज ुक युगमे देहिरसँ आगा ँ पयर निह बढ◌◌ा सकय एको कौड◌◌ीअरिज निह सकय, एतेक तक जे ककरहु ँसँ भिर मुँह बािज निह सकय तकरा जँना ँगड◌ि◌ कही बलेल कही, बौक कही, गोबरक चोत कही त’ को अिचतनिह।” 20105
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िव दे ह िवदेह <strong>Videha</strong> িবেদহ िवदेह थम मैिथली ािक्षक ई िका <strong>Videha</strong> Ist MaithiliFortnightly e Magazine िवदेह थम मैिथली पािक्षक ई पिका ०१ जनवरी २००९ (वषर् २मास १३ अंक २५) http://www.videha.co.in/ मानुषीिमह संस्कृ ताम्ओ लोकिन वैिदक ऋचा धिरक रचना कय छलीह। लोपामुा, धोषा, िसकता, िनवावरी,िववारी आिद एिह कारक िवद ुषी नारी छलीह जिनक उेख ऋेदमे भेटैत अिछ।वैिदक यज्ञवादक ितियाक फलप उपिनषद्कालमे एक नव दाशिनकर्आोलनक ार भेल। ओिहमे नारीक सहयोग को कम निह छल। ऋिषयाज्ञवल्क पी मैयी परम िवद ुषी छलीह। ओ धनक अपेक्षा ज्ञान ािक कामनाबेसी करैत छलीह। ब ृहदारक उपिनषदमे उेख अिछ जे याज्ञवल्क दोसर पीकाायनीक पक्षमे अपन सितक अिधकार छोड◌ि◌ अपन पितसँ मा ज्ञानदानकाथ र्ना कएलिन। एिह तरहेँ ब ृहदारक उपिनषद ् मे सेहो िवदेहक राजा जनककसभामे गागीर् आ याज्ञवल्क म उ रीय दाशिनक र् वाद-िववादक उेख अिछ।उर वैिदक कालमे समयक गितक संगिह-संग नारी िशक्षाक मे शःशः ास होम’ लागल। काकेँ सुिवात आचाय र् ओ िस िशक्षा के धिरभेज’ मे समाजक उाह िकछु कम पड◌ि◌ गेलैक, ई िवचार बल भ’ गेल जेघरिह पर काक िपता, भाय अथवा आन को िनकट संब ंधी हुनका िशिक्षत करताह।पिरणाम प ाभािवक पसँ ओकर धािम र्क अिधकार िशक्षाक अिधकारमे ास होमलागल।कालमासारे शः शः नारीक ित पुषक बदलैत धारणाक कारँ नारीवमे अिशक्षा ा भ’ गेल। मैिथल समाजमे एखनहँ ु नारी िशक्षाकेँ अधलाह मानलजाइत अिछ। नारी जगतमे िशक्षाक अभावक कारँ ओकर म ू एको कौड◌◌ीकनिह रिह जाइत अिछ। एिह संदभर्मे ‘बसात’ केँ देखल जा सकैछ-“जे मिहला आज ुक युगमे देहिरसँ आगा ँ पयर निह बढ◌◌ा सकय एको कौड◌◌ीअरिज निह सकय, एतेक तक जे ककरहु ँसँ भिर मुँह बािज निह सकय तकरा जँना ँगड◌ि◌ कही बलेल कही, बौक कही, गोबरक चोत कही त’ को अिचतनिह।” 2<strong>01</strong>05