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िव दे ह िवदेह Videha িবেদহ िवदेह

'िवदेह' ५७ म अंक ०१ मइ २०१० (वषर् ३ मास २९ ... - WordPress.com

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<strong>िव</strong> <strong>दे</strong> <strong>ह</strong> <strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong> <strong>Videha</strong> <strong>িবেদহ</strong> <strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong> थम मैिथली पािक्षक ई पिका <strong>Videha</strong> Ist Maithili Fortnightly e Magazine <strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong> थम मैिथली पािक्षक '<strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong>''<strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong>' ५७ म अंक ०१ मइ २०१० (वषर् ३ मास २९ अंक ५७)http://www.videha.co.in/ मानुषीिम<strong>ह</strong> संस्कृ ताम्र<strong>ह</strong>ै ि क मन पड़लै, <strong>ह</strong>ाय रे बा बा <strong>ह</strong>ब कथीपर। जुना तँ अिछ ये नि<strong>ह</strong> । अगिद गमे पिड़ गेल। पि<strong>ह</strong> ने जे से मन पड़ैत तँ अंगनेसँजु नो नेने अिब तॱ मुदा, से<strong>ह</strong>ो ने मन र<strong>ह</strong>ल। छोिड़ <strong>दे</strong>बइ तँ सभटा आने लऽ जाएत। एते बेिर उिठ गेल ि कछु खेनौ ने छी। मुदाजारन <strong>दे</strong>िख मनमे खुशी <strong>ह</strong>ोय जे क<strong>ह</strong>ुना-क<strong>ह</strong>ुना एक पनरि<strong>ह</strong> या तँ चलबे करत। जँ दू-चािर िद न आरो तोिड़ लेब तँ भिर जाड़कओिर यान भऽ जाएत। ऑंिख उठा घसबाि<strong>ह</strong> नी सभ िद स तकलक जे िक यो भेटत तँ ओकरे <strong>ह</strong>ॉंसू लऽ कड़िच ये नइ तँ रािड़ ये कािटजु ना बना लेब। मुदा से<strong>ह</strong>ो नै ककरो <strong>दे</strong>खै िछ यै। ि <strong>ह</strong>या-ि<strong>ह</strong> या करजान िद स ि वदा भेल। मुदा ओ<strong>ह</strong>ो केराक सुखल डपोर तँ ि बना<strong>ह</strong>ँसुए काटल नि<strong>ह</strong> <strong>ह</strong>एत। करजान प<strong>ह</strong>ुँचते <strong>दे</strong>खलक जे करजानबला केरा घौड़ कािट भालिर आ थ <strong>ह</strong>ोकेँ कािट छोिड़ <strong>दे</strong>ने अिछ ।जु ना <strong>दे</strong>िख मनमे खुशी भेलइ। पान-सातटा जु ना लऽ आिब बोझ बन् <strong>ह</strong>लक। पॉंच बोझ। चारू बोझ गाछे लग छोिड़ एकटा नेनेआंगन आइिल ।आंगन आिब सोचए लगिल जे ि कछु बना कऽ खा लइ छी। फेिर मनमे भेले जे जखने आंगनक काजमे ओझड़ाएव तखने जारनबाधेमे रि<strong>ह</strong> जाएत। तत्-मत् करैत पािन पीलक। घरसँ तमाकुल िन कािल चुनबैत ि वदा भेल। पॉंचो बोझ उिघ लेलक। काठी जेकॉंडॉंड़ो आ गरदिन यो तािन <strong>दे</strong>लकै। <strong>दे</strong><strong>ह</strong>ो-<strong>ह</strong>ाथमे ददर् <strong>ह</strong>ुअए लगलै। <strong>ह</strong>ाथो-पएर नि<strong>ह</strong> धोय ओसारेपर भुँइयेमे ओंघरा गेिल । थाकल-ठि<strong>ह</strong> आइल <strong>दे</strong><strong>ह</strong> ओंघराइत िन न पिड़ गेल।बेिर टिग गेल। घरक छा<strong>ह</strong>िर अंगनामे दू <strong>ह</strong>ाथ ससिर गेल। डेिड़ यापर सँ जोिग नदर सोर पाड़ए लगल- ‘‘काकी, काकी।’’दुखनीक िन न टुटल। डेिढ़ यापर सँ ससिर जोिग नदर आंगन गेल तँ <strong>दे</strong>खलक जे भुँइयेमे िन न भेिर सुतल अिछ । फेिर बाजल-‘‘काकी, काकी।’’ठाढ़ भेिल जोिग नदरक मनमे उठल जे <strong>ह</strong>म<strong>ह</strong>ूँ तँ पाइयेबला अइठीन र<strong>ह</strong>लॱ मुदा, सभ सुख-सु<strong>िव</strong> धा रि<strong>ह</strong> तो ओकरा सभकेँ ऐ<strong>ह</strong>न िन नक<strong>ह</strong>ॉं <strong>ह</strong>ोइ छै। <strong>दे</strong>खै छी जे पेट खपटा जेकॉं खलपट छै, भिर सक खेवो केने अिछ ि क नि<strong>ह</strong> । त<strong>ह</strong>ूमे पाएरो धुराइले <strong>दे</strong>खै िछ यैभिर सक कतौसँ काज कए कऽ आइिल अिछ । अखन जे घरक सभ कुछ उठा ि कयो लऽ जाय तँ बुझवो ने करत। एकरा सब<strong>ह</strong>ककोन दुिन यॉं छै। जि<strong>ह</strong> ना चीनीक कीड़ाकेँ िम रचाइमे दऽ <strong>दे</strong>ल जाए तँ ओ मिर जाएत। जे वभा<strong>िव</strong> के छैक। मुदा ि क िम रचाइककीड़ा चीनीमे जीिब सकत। ि विच ि थ ित जोिग नदरक मनमे उिठ गेल। मुदा काजक धुमसा<strong>ह</strong>ी, <strong>िव</strong> चारक दुिन यॉंसँ खॴिच , ओकरा<strong>ह</strong>ड़वड़ा <strong>दे</strong>लक। फेिर काकी, काकीक आवाज <strong>दे</strong>लक। मुदा िन न नि<strong>ह</strong> टुटल <strong>दे</strong>िख कपड़ाकेँ ओसारेपर रिख दुखनीक घुी दाबएलगल। घुी दिब ति<strong>ह</strong> दुखनीक िन न टूटल। ऑंिख मुननि<strong>ह</strong> बाजिल - ‘‘अयँ गे सामा ( यामा) काि <strong>ह</strong> ि कअए ने ऐलै?’’दुखनीक अवाज सुि न जोिग नदरक मनमे भेल जे भिर सक काकी सपनाइए। घुीकेँ ि <strong>ह</strong>लबैत बाजल- ‘‘काकी, काकी....।’’ऑंिख खोिल दुखनी उिठ कऽ बैिस गेल। <strong>ह</strong>ाफी कऽ जोिग नदर ि दस तकलक। मुदा ि कछु बाजिल नि<strong>ह</strong> । मोटरी खोिल जोिग नदरजोड़ भिर साड़ी, साया, एकटा आंगीक संग दसटा दसटक<strong>ह</strong>ी आगूमे रिख बाजल- ‘‘अखैन धिर काकी अ<strong>ह</strong>ॉं न<strong>ह</strong>ेबो ने केल<strong>ह</strong>ुँ<strong>ह</strong>ेँ।’’जि<strong>ह</strong> ना आम बीिछ िन <strong>ह</strong>ार गाछक िन च् चॉंमे खसल आम <strong>दे</strong>िख उजगुजा जाइत ति<strong>ह</strong> ना दुखनी उजगुजा गेिल । बाजिल - ‘‘बौआ, जारिननइ छलै वए<strong>ह</strong> तोड़ए िभ नसरे चिल गेलॱ। ओकरे स <strong>ह</strong>ारैत-स <strong>ह</strong>ारैत दुप<strong>ह</strong>र भऽ गेल। ि कछु खेबो ने केने छी। अराम करए लगलॱि क ऑंख लिग गेल।’’दुखनीक बात सुि न जोगेनदर बाजल- ‘‘काकी, अखैन अगुताइल छी तेँ नै अँटकब। पूजा उसरला बाद िन चेनसँ िआ ब आरो ग पोकरब आ कोनो कारोबार करैले मदित से<strong>ह</strong>ो कऽ <strong>दे</strong>ब। अखैन मेला <strong>दे</strong>खैले कपड़ो आ रूपैइयो <strong>दे</strong>लॱ<strong>ह</strong>ेँ। जाइ छी।’’जोिग नदर उिठ कऽ ि वदा भऽ गेल। मने-मन दुखनी ि <strong>ह</strong>साब जोड़ए लागिल जे अधा रूपैया कऽ चाउर कीिन लेब आ अधा<strong>ह</strong>ाथ-मुीमे रिख लेब। मेला-ढेलाक समए छी कखैन कोना भूर फूिट जाइत। फेिर मनमे एलै जे यामो तँ अिब ते <strong>ह</strong>एत। ओ<strong>ह</strong>ोचाउर अनबे करत। जखन अनिद नो नेने अबैए, अखन तँ स<strong>ह</strong>जे पाबैिन ये छी। दुनू नाइत-नाित न से<strong>ह</strong>ो ऐबे करत। ओकरो <strong>ह</strong>ाथकेँ54

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