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िव दे ह िवदेह Videha িবেদহ िवदेह

'िवदेह' ५७ म अंक ०१ मइ २०१० (वषर् ३ मास २९ ... - WordPress.com

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<strong>िव</strong> <strong>दे</strong> <strong>ह</strong> <strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong> <strong>Videha</strong> <strong>িবেদহ</strong> <strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong> थम मैिथली पािक्षक ई पिका <strong>Videha</strong> Ist Maithili Fortnightly e Magazine <strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong> थम मैिथली पािक्षक '<strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong>''<strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong>' ५७ म अंक ०१ मइ २०१० (वषर् ३ मास २९ अंक ५७)http://www.videha.co.in/ मानुषीिम<strong>ह</strong> संस्कृ ताम्आधुिनक पिरवेशमे िदन ितिदन समसामियक समाजक यिक्त आराम तलब बनल जा र<strong>ह</strong>ल अिछ। ओ जेना मक म<strong>ह</strong> वसँअपिरिचत भ’ गेल अिछ। यिक्त- यिक्तमेे एतेक वेसी ऊज छैक जे ओ स भव कायर् से<strong>ह</strong>ो स भव क’ सकल अिछ। तेँ मानवजीवनमे म सवपिर साधन िथक। एकांकीकार मदान (1955) एकांकीमे समाजकेँ मो मुख बनयबाक उे यसँ, शैशवाव थि<strong>ह</strong>सँमक म<strong>ह</strong> वकेँ बुझयबाक <strong>ह</strong>ेतु एि<strong>ह</strong> एकांकीक रचना कयलिन। वात योर भारतक सवर्तोमुखी <strong>िव</strong>कासक िशक्षाक नव नीितमे एकरउपयोिगताकेँ उािटत करबाक उे यसँ अ ाधुिनक पाठातगर्त बुिनयादी िशक्षाकेँ म<strong>ह</strong> व <strong>दे</strong>बाक उे यसँ मदान करबाक वृिजगेबाक लेल एि<strong>ह</strong> एकांकीक ओ रचना कयलिन। एकरा मा यमे आिथर्क वतता तँ आसानीसँ भेि ट जा सकैछ। अतएव तन-मन,धनसँ अपन मातृभूिमक सेवामे त पर भ’ जयबाक योजन अिछ। यिक्त- यिक्तमे एि<strong>ह</strong> भावनाकेँ जगयबाक <strong>ह</strong>ेतु जे यास भेल ओ तँअपन थानपर र<strong>ह</strong>ल, िकतु <strong>िव</strong>ालय, म<strong>ह</strong>ा<strong>िव</strong>ालय एवं <strong>िव</strong> व<strong>िव</strong>ालय तरपर ए.सी.सी., एन.सी.सी., एन.एस.एस., सदृश योजनाकेँिया<strong>िव</strong>त करबाक लेल थापना कयल गेलैक जकर मूल उे य छलैक मदान करबाक वृि जगेबाक तथा भावी संतिनकेँशेशवा थाि<strong>ह</strong>सँ अनुशासनक सूमे बा <strong>ह</strong>ल जाय जे भ<strong>िव</strong> यक <strong>ह</strong>ेतु लाभ द भ’ सकैछ तेँ तँ ज्ञान-धन क<strong>ह</strong>ैछ:<strong>दे</strong>शक एक-एक गोटेसँ िनवेदन अिछ जे िनमण कायर्मेतन-मन-धनसँ स<strong>ह</strong>ायता करू। मदानक भुखिलभारत माता अ<strong>ह</strong>ाँक आान कै र<strong>ह</strong>ल अिछ।(सामाधन, पृ ठ -27)।एि<strong>ह</strong> वृिक उदय भेलासँ <strong>दे</strong>शक नव-िनमण िनित रूपेँ <strong>ह</strong>ैबाक स भावना अिछ। सरकार एि<strong>ह</strong> िशक्षा नीितक सरा<strong>ह</strong>ना करैत छिनआ जे कूल एवं कालेजमे पढ़िन<strong>ह</strong>ारपर दबाव वा जनमानस उ साि<strong>ह</strong>त भ’ कए एि<strong>ह</strong> िदशामे कायर्रत <strong>ह</strong>ैता<strong>ह</strong>। तखन सु दर लालककथन छिन:जे सोचलक ई बात बड़ बुिधयार छल। <strong>दे</strong>ख<strong>ह</strong>क आब पढ़ैतछैक बार<strong>ह</strong>ोवणर्क िधयापूता, सबकेँ नोकरी गेटतैक नि<strong>ह</strong>,तखन सब बेकार भेल गामेपर एि<strong>ह</strong> खो <strong>ह</strong>ीसँ ओि<strong>ह</strong>खो <strong>ह</strong>ी ढ़<strong>ह</strong>नाइत िफरैत छल से तँ नि<strong>ह</strong> ने <strong>ह</strong>ैत। (समाधान, पु ठ-32)।अनािद कालि<strong>ह</strong>सँ समाज दु<strong>ह</strong> वगर्मे <strong>िव</strong>भािजत र<strong>ह</strong>ल अिछ जकरा धनीक-गरीब वा शोषक-शोिषत वा स प न-<strong>िव</strong>प न आिद <strong>िव</strong><strong>िव</strong>धसंज्ञासँ <strong>िव</strong>िभ न समयमे स बोिधत कयल जाइत र<strong>ह</strong>ल अिछ। सामािजक <strong>िव</strong>षमता सबसेँ वल त सम या िथक जकर फल वरूपसमाजक <strong>िव</strong>भाजन भ’ गेलैक नया समाज क वर्मान वरूप <strong>िव</strong>लुिपत भ’ गेल। आिथर्क पिरिथि त वा ि<strong>ह</strong>त-स ब धक आधारपरसमाज मुख् यत: तीन ेणीमे <strong>िव</strong>भािजत अिछ। उच् च वगर्, म य वगर् ओ िन न वगर्। उपयुर्क् त आधारपर समाजक अ तगर्त वगर् वैष यकआगमन भेलैक। सामािजक वातावरणक उपयुर्क् त पृ ठभूिममे ि<strong>ह</strong>नक थान एक उलेखनीय एकांकी िथक, जाि<strong>ह</strong>मे एकांकीकार39

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