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िव दे ह िवदेह Videha িবেদহ िवदेह

'िवदेह' ५७ म अंक ०१ मइ २०१० (वषर् ३ मास २९ ... - WordPress.com

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<strong>िव</strong> <strong>दे</strong> <strong>ह</strong> <strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong> <strong>Videha</strong> <strong>িবেদহ</strong> <strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong> थम मैिथली पािक्षक ई पिका <strong>Videha</strong> Ist Maithili Fortnightly e Magazine <strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong> थम मैिथली पािक्षक '<strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong>''<strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong>' ५७ म अंक ०१ मइ २०१० (वषर् ३ मास २९ अंक ५७)http://www.videha.co.in/ मानुषीिम<strong>ह</strong> संस्कृ ताम्नाय त वक अतगर्त व तुक सविधक म<strong>ह</strong> वपूणर् थान अिछ। व तु ारा एकांकीक गितशील <strong>ह</strong>ोइत अिछ। रस-िन पि, चिरकसजीवता एवं गितशीलताक लेल व तु क िनमण कयल जाइत अिछ। एि<strong>ह</strong> दृिएँ व तु एकांकीक मुख त वक रूपमे वीकारल गेलअिछ। एकरा अ तगर्त कायव था वा यापार त व एकांकीकेँ सफल ओ साण बनबाक उे यसँ कयल जाइत अिछ। कायर्क गाितुतगितएँ बढ़यबाक िदशामे व तु-<strong>िव</strong> यास े ठ मा यम िथक, कायर् एकांकीक मुख सा य िथक। नाटकीय सौ ठवकेँ व तु-संगठनएवं यापक समुिचत योजनाक रूपमे <strong>दे</strong>खल जाइत अिछ। एि<strong>ह</strong> संगमे पा चा य आलोचक ई.एम. फा टर्रक कथन छिन जेकथानक घटनाक ओ कालमानुसार वणर्न िथक जाि<strong>ह</strong>मे कायर्-कारण-स बंधपर <strong>िव</strong>शेष बल र<strong>ह</strong>ैत अिछ। नाटकक वा एंकाकीमे संघषर्वा क म<strong>ह</strong>ा सव पिर अिछ। तेँ व तु <strong>िव</strong> यासक वा एकांकीमे संधषर् वा क म<strong>ह</strong>ा सवपिर अिछ। तेँ व तु <strong>िव</strong> यासकअ तगर्त कथानकपर दबाब ओकर ितियाक अंकन कयल जाइछ। व तु-<strong>िव</strong> यास लेखकक उे यक अनुरूप मवता एवं<strong>िव</strong> तार <strong>ह</strong>ण करैछ। अतएव एकांकीकार व तु-<strong>िव</strong> यास करबा काल जीवनमे घिटत भेिन<strong>ह</strong>ार समसामियक जीवनसँ सव र<strong>ह</strong>ैतछिथ, कारण मानव जीवनसँ <strong>िव</strong>िच्छ न कोनो साि<strong>ह</strong> य उ कृ ट नि<strong>ह</strong> भ’ सकैछ।िनरक्षता िन वारक पाठशाला (1955)मे एकांकीकार जाि<strong>ह</strong> समसामियक सम याक उप थापन एि<strong>ह</strong>मे कयलिन अिछ तकर संकेत ओपचास वषर् पूवर्ि<strong>ह</strong> कयने र<strong>ह</strong>िथ तकर ितरूप बीसम शता दीक नवम दशकमे सरकारक मा यमे िनरक्षरकेँ साक्षार बनयबाक िदशामेयास भेल अिछ। सरकार वय क िशक्षा योजनापर करोड़क करोड़ रूपैया खचर् करैत जा र<strong>ह</strong>ल अिछ जकर मूल उे य छैक जेको<strong>ह</strong>ुना येक भारतीयकेँ साक्षर बनाओल जाय। साि<strong>ह</strong> य-िच तक कतेक दूरदश <strong>ह</strong>ोइत छिथ तकर वा त<strong>िव</strong>कताक पिरचय एि<strong>ह</strong>एकांकीक णयनसँ पाठक वा दशर्ककेँ उपल ध <strong>ह</strong>ोइत छिन। समसाम ियक पिरवेशमे सरकार वय क िशक्षा नीितकेँ िया<strong>िव</strong>तकरबाक <strong>ह</strong>ेतु नुक् कड़ नाटकक आयोजन करैत अिछ। जनसामा यकेँ एि<strong>ह</strong> िदशामे आकिषर्त करबाक कितपय लोभन दैत अिछ।तथािप ओकर कतेक पिरणाम ओकरा भेिट र<strong>ह</strong>ल छैक तकरा प ट करबाक योजन नि<strong>ह</strong>, यु अनुभव करबाक योग् य िथक।िक तु एकांकीकार समाजक एि<strong>ह</strong> वल त सम याक स ब धमे कतेक पूवर् यानाकिषर्त कयने छला <strong>ह</strong> तकर पीकरण उक् तएकांकीक मननसँ प ट भ’ जाइत अिछ। नेना बाबू ने तेना सोने झाकेँ िशिक्षत करबाक िनिम यासरत भेला<strong>ह</strong> जकर फल वरूपओ िशिक्षत भ’ गेला<strong>ह</strong>। एकरा मा यमे एकांकीकार एि<strong>ह</strong> <strong>िव</strong>षयकेँ उािटत करबाक उपम कयलिन अिछ जे <strong>दे</strong>शक उित तखनेस भव अिछ जखन येक भारतीय िशिक्षत क’ कए ज्ञानक योित विलत क’ कए एकर वा त<strong>िव</strong>क म<strong>ह</strong> व बुझिथ। तखनेमातृभूिमक वतताक वा त<strong>िव</strong>क अथर् बुझबामे तथा अपन अिधकार ओ कर् यक पालनमे सक्षम भ’ सकता<strong>ह</strong> अ यथा सब यासिनरथर्क अिछ। एि<strong>ह</strong> िनिम आव यक अिछ जे जनसामा यकेँ िशिक्षत कयल जाय। एि<strong>ह</strong> संगमे चतुभुर्जक कथन छिन:जतेक पढ़ल िलखल लोक छी से यिद ितज्ञा करी आ’ कम-सँकम दस यिक्तकेँ िशिक्षत बनाबी। एक सँ दस, दस सँ सै,सै सँ <strong>ह</strong>जार तुर त भ’ जैत। तैं <strong>ह</strong>ेतु साँझखन जे समयघूड़लग िबतबैत अिछ से ए<strong>ह</strong>ी काजमे लगाबी तँ कोन क्षित। (समाधान, पृ ठ-7)उपयुर्क् त वातावरणक पृ ठभूिममे एकांकीकार समाजक समक्ष एक ितमान उपिथत कयलिन अिछ जे िशिक्षत समाज भ’ कए अपनसामािजक दािय वक संगि<strong>ह</strong>-संग रा ीय दाियवकेँ बुिझ <strong>दे</strong>शक ित अपन याग कतर् यकेँ बुझिथ। ई तखने स भव भ’ सकैछ जेलोक अपन अिधकार ओ कर् यक ितपूणर् साकांक्ष भ’ पौता<strong>ह</strong> अ यथा ई संभव नि<strong>ह</strong>। एि<strong>ह</strong> दृिएँ एकर कथानक समाजकेँ अपनअिधकार ओ कतर् यक ित िदशा-बोध करबैत अिछ।38

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