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िव दे ह िवदेह Videha িবেদহ िवदेह

'िवदेह' ५७ म अंक ०१ मइ २०१० (वषर् ३ मास २९ ... - WordPress.com

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<strong>िव</strong> <strong>दे</strong> <strong>ह</strong> <strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong> <strong>Videha</strong> <strong>িবেদহ</strong> <strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong> थम मैिथली पािक्षक ई पिका <strong>Videha</strong> Ist Maithili Fortnightly e Magazine <strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong> थम मैिथली पािक्षक '<strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong>''<strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong>' ५७ म अंक ०१ मइ २०१० (वषर् ३ मास २९ अंक ५७)http://www.videha.co.in/ मानुषीिम<strong>ह</strong> संस्कृ ताम्अथर्, काम ओ मोक्ष ई चारू पुरुषाथर् केँ िस कयिन<strong>ह</strong>ार <strong>ह</strong>ोिथ । एि<strong>ह</strong> सँ आन जे छिथ से पुरुष रूपमे जेना पुच्छ<strong>ह</strong>ीनपशुए ।” <strong>िव</strong>ापितक पुरुष परीक्षा चािर पिरच्छेद मे <strong>िव</strong>भािजत अिछ । पुरुष लक्षणक अनुसार थम मे – वीरक, दोसरमे सुवुिक, तेसर मे स<strong>िव</strong>धक ओ चािरम पिरच्छेद मे चारू पुरुषाथर्क ितपादक कथा अिछ ।सुरे झा सुमन जीक भूिमका सँ ब<strong>ह</strong>ुत रास तय ओि<strong>ह</strong>ना एि<strong>ह</strong> नाय रुपांतरण मे राखल गेल अिछ । एि<strong>ह</strong> नायरूपक काशकीय मे िलखने छिथ जगदीश िम : पुरुष परीक्षाक सबस’ पि<strong>ह</strong>ने बँगला अनुवाद 1815 ई. मे पं. <strong>ह</strong>रसाद राय ारा कयल गेल । वषर् 1830 मे एकर अंेज़ी अनुवाद राजा कालीकृण ब<strong>ह</strong>ादुर ारा कयल गेल । आगूजाक’ एक बेर फेर अँेज़ी मे जॉजर् अा<strong>ह</strong>म िअसर्न पुरुष परीक्षाक अनुवाद अँेज़ी मे केलिन । संकृत मे िलखलपुरुष परीक्षाक मैिथली भाषा मे पि<strong>ह</strong>ल अनुवाद कवीर चदा झा 1888 ई. मे केलिन । एकर बाद त’ कतेको बेरएकर संकरण आ मैिथली करण <strong>ह</strong>ोइत र<strong>ह</strong>ल अिछ ।एि<strong>ह</strong> पुतक में काशकीय, अवतरिणका, पुरोवाक चिरटा पिरच्छेद अिछ । चिरटा पिरच्छेद में बाँटल गेल अिछ । एि<strong>ह</strong>अनुमिणकाक थम पिरच्छेद मे नौ, ितीय पिरच्छेद में सात, तृतीय पिरच्छेद में चौद<strong>ह</strong> तथा प<strong>ह</strong>टा पाठ अिछ । कुलिमला क’ पैंतालीस । अपन पुरोवाक में योगानंद जी सूचना दैत छिथ जे ई रूपांतरण वषर् 1990-95 के बीच कयलगेल आ 2005 ई. क अैल स’ सताि<strong>ह</strong>क सारण सार भारती, पटना सँ भ’ चुकल अिछ । एि<strong>ह</strong> पुतक लेल ईम<strong>ह</strong>वपूणर् अिछ जे एकर नाय रूपांतरण रेिडयो <strong>िव</strong>धा में अित सुदर तरीका सँ तुत <strong>ह</strong>ोयत कारण एकर ाय: सभकथाक नाय मंचन 20-30 िमनटक <strong>ह</strong>ोयत आ संगि<strong>ह</strong> सभ कथा अपना आम में सपूणर्ता लेने अिछ । रेिडयो नाटककलेल जतेक तवक आवयकता <strong>ह</strong>ोइछ से सब रूपांतरण में <strong>िव</strong>मान अिछ ।एि<strong>ह</strong> ठाम <strong>ह</strong>म <strong>िव</strong>ापित िलखल पुरुष-परीक्षा का सदभर्क <strong>िव</strong>शेष चच नि<strong>ह</strong> क’ क’ योगानंद सुधीर ारा कयल गेल एकरनाय रूपांतरणक चच करब ।ई िनित जे एि<strong>ह</strong> तर<strong>ह</strong>क काज करबा स’ <strong>िव</strong>तजन ाय: कतराइत र<strong>ह</strong>ैत छिथ । तकर कतेको कारण अिछ – पि<strong>ह</strong>लत’ ए<strong>ह</strong>न काज करबा लेल एक संग मूल पाठ आ नाय <strong>िव</strong>धाक से<strong>ह</strong>ो पूवर् जानकारी <strong>ह</strong>ोयब जरूर <strong>ह</strong>ोइछ । जकर ाय:अभाव छै । दोसर ई जे ए<strong>ह</strong>न काज करबा लेल असीम धैयर्क आवयकता <strong>ह</strong>ोइछ तकरो अभाव अिछ । एि<strong>ह</strong> संग आरोकतेको कारण अिछ ।पुरुष परीक्षाक सभ कथा के अययन क’ओकर नाय रूपातरण करब अित किठन काज छल । मूल पुतक मे ाय:सभ कथा एक दोसर स’ जुड़ल अिछ । एि<strong>ह</strong> ठाम योगानद जी अयंत गंभीरता संग दुनू बातक यान रखलिन अिछ ।पि<strong>ह</strong>ल त’ जे सभ नायरूप एक दोसर स’ जूड़ल <strong>ह</strong>ोयबाक चा<strong>ह</strong>ी दोसर इ<strong>ह</strong>ो जे सभ अपना आप मे वतंो ओतबे <strong>ह</strong>ोइआ एि<strong>ह</strong> दुनू सीमा पर योगानंद जी नीक जेना ठाढ़ भेलैत छिथ ।ए<strong>ह</strong>न ऎित<strong>ह</strong>ािसक पुतक के नायरुप मे सुगम संवादक संग तुत करबा स’ मैिथली संसार समृ भेल अिछ । कोनोसाि<strong>ह</strong>य नायरूप मे संवाद ित संवाद मे पाठक के बेसी आकिषर्त करैत छै तेँ एि<strong>ह</strong> पुतकक इ<strong>ह</strong>ो म<strong>ह</strong>वपूणर् <strong>िव</strong>शेषताभेल । कथाक नायरूप बनेबाक लेल लेखक कतेको ठाम अपना िदस स’ पा गढ़लिन अिछ से आरो किठन काज31

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