Videha ‘िवदेह’

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Videha ‘िवदेह’ थम मैिथली पािक्षक ई पिका १ नवम्बर अक्टूबर २००८ (वषर् १ मास ११ अंक२१) িরেদহ' পািkক পিtকা Videha Maithili Fortnightly e Magazine িরেদহ िवदेह Videha িবেদহhttp://www.videha.co.in/ मानुषीिमह संस्कृ ताम्हरेब आर पेब सभ नशीवक खेल अिछ !िदल िजनका अपनाबे हुनकेसँ ार क लेब !!िदलजे डूबलतs आशाके गाम आ ँखमs मचैल गेल !एक िचराग की ब ुझल सौ िचराग जैल गेल !!हमर आर हुनकर राह बस एतबे देर एक छल !द ुई कदम चललों की राहे बदैल गेल !!रसँ पलक भी ं गे लैत छलो !याद हुनकर आबैत अिछतँ कैन लैत छलो !!सोों की िबसैर जै हुनका !मुदा हर बेर ई फैसला बदैल लैत छलो !!अपन आगाजसँ आजू तलक िजंदगी, अिहकें याद मs गुम छल !तयों पता िकये ई एहसास अिछ, जेना की चाहत हमर कम छल !!१. ग गेश गुंजन २. ामल सुमन. ी ड◌ॉ. गंगेश गुंजन(१९४२- )। ज ान- िपलखबाड़, मध ुबनी। एम.ए. (िही),रेिडयो नाटक पर पी.एच.डी.। किव, कथाकार, नाटककार आ' उपासकार।१९६४-६५ मे पा ँच गोटेकिव-लेखक “काल पुष”(कालपुष अथा र्त् आब गीर्य भास कुमार चौधरी, ी गंगेश गुजन, ीसाकेतान, आब गीर्य ी बालेर तथा गौरीका चौधरीका, आब गीर्य) नामसँ सािदत करैतमैिथलीक थम नवलेखनक अिनयिमतकालीन पिका “अनामा”-जकर ई नाम साकेतानजी ारा देलगेल छल आऽ बाकी चा गोटे ारा अिभिहत भेल छल- छपल छल। ओिह समयमे ई यास तािहसमयक यथािितवादी मैिथलीमे पैघ द ुाहस मानल गेलैक। फणीरनाथ “रे” जी अनामाक लोकाप र्णकरैत काल कहलि, “ िकछु िछनार छौरा सभक ई सािहिक यास अनामा भावी मैिथली लेखनमेयुगचेतनाक जरी अभवक बाट खोलत आऽ आधिनक ु बनाओत”। “िकछु िछनार छौरा सभक” रेजीकअपन अाज छलि बजबाक, जे हुनकर समे रहल आऽ सुन अिछ, तकरा एकर ना आऽ रसब ूझल हेतैक। ओना “अनामा”क कालपुष लोकिन को पमे सािहिक मा मया र्दाक ित अवहेलनावा ितरार निह कए रहिथ। एकाध िटणीमे मैिथलीक पुरानपंथी कािचक ित कितपय मुखर68

Videha ‘िवदेह’ थम मैिथली पािक्षक ई पिका १ नवम्बर अक्टूबर २००८ (वषर् १ मास ११ अंक२१) িরেদহ' পািkক পিtকা Videha Maithili Fortnightly e Magazine িরেদহ िवदेह Videha িবেদহhttp://www.videha.co.in/ मानुषीिमह संस्कृ ताम्आिवारक र अव रहैक, जे सभ युगमे नव-पीढ़◌ीक ाभािवक वहार होइछ। आओर जे पुरानपीढ़◌ीक लेखककेँ िय निह लगैत छिन आऽ सेहो भािवके। मुदा अनामा केर तीन अंक मा िनकिलसकलैक। सैह अनाा बादमे “कथािदशा”क नामसँ .ी भास कुमार चौधरी आऽ ी गंगेश गुंजन द ूगोटेक सादनमे -तकनीकी-वहािरक कारणसँ-छपैत रहल। कथा-िदशाक ऐितहािसक कथा िवशेषा ंकलोकक मानसमे एख ओिहना छि। ी गंगेश गुंजन मैिथलीक थम चौबिटया नाटक बिधबिधयाकुलेखक छिथ आऽ िहनका उिचतवा (कथा संह) क लेल सािह अकादमी पुरार भेटल छि। एकरअितिरक् मैिथलीमे हम एकटा िमा पिरचय, लोक सुन ू (किवता संह), अार- इजोत (कथा संह),पिहल लोक (उपास), आइ भोर (नाटक)कािशत। िहीमे िमिथला ंचल की लोक कथाएँ, मिणपकका- बिनजाराक मैिथलीसँ िही अवाद आऽ श तैयार है (किवता संह)। ुत अिछ गुनजीकमैगनम ओपस "राधा" जे मैिथली सािहकेँ आबए बला िदनमे रणा तँ देबे करत सँगिह ई ग-प-जब ुली िमित सभ द ुःख सहए बाली- राधा श ंकरदेवक पररामे एकटा नव-परराक ारकरत, से आशा अिछ। पढ़◌ू पिहल बेर "िवदेह"मे गुनजीक "राधा"क पिहल खेप।-सादक।मैिथलीक थम चौबिटया नाटक पढबाक लेल बिधबिधया, ु गुंजनजीक नाटक आइ भोर पढ़बाक लेल आइभोर आऽ गुंजनजीक दोसर उपास पढ़बाक लेल पिहल लोक िक क। ( हुनकर पिहल उपास"माहुर बोन"क म ूल पाुिलिप िमिथला िमिहर काया र्लयसँ लु भए गेल, से अकािशत अिछ। गुंजनजी सँअरोध के िछयि जे जतबे मोन छि, ततबे पाठकक लेल पठाबिथ, देख ू किहया धिर ई संभवहोइत अिछ।)गुंजनजीक राधािवचार आ संवेदनाक एिह िवदाइ युग भू- म ंडलीकरणक िबहाड़ि◌मे राधा-भावपर िकछु-िकछु मेग, बड़बेचैन कए रहल।अनवरत िकछु कहबा लेल बा करैत रहल। करिह पड़ल। आब तँ तकरो कतेक िदन भऽगेलैक। ब ंद अिछ। मा से मन एखन छोड़ि◌ दे अिछ। जे ओकर मजीर् । मुदा तं निह कएदे अिछ। मखदेवा सवारे अिछ। करीब सए-सवा सए पात किह चुकल िछयैक। मा िलखाएलछैक ।आइ-काि मैिथलीक महा ंगन (महा+आ ंगन) घटना-द ुघ र्टना सभसँ डगमगाएल-जगमगाएल अिछ। सुागतम!लोक मानसकें अिभजन-बि ु फेर बेदखल कऽ रहल अिछ। मजा केर बात ई जे से सब भऽ रहलअिछ- मैिथलीयेक नाम पर शहीद बनवाक उपम दश र्न-िवाससँ। िमिथला राक माताक आ ंदोलनसँलऽ कतोक अा लाभासक एन.जी.ओ.यी उोग मागे र् सेहो। एखन हमरा एतवे कहवाक छल ।से एहन कालमे हम ई िवहास िलखवा लेल िववश छी आऽ अहा ँकेँ लोक धिर पठयवा लेल राधा किहरहल छी। िवचारी।69

<strong>Videha</strong> <strong>‘िवदेह’</strong> थम मैिथली पािक्षक ई पिका १ नवम्बर अक्टूबर २००८ (वषर् १ मास ११ अंक२१) িরেদহ' পািkক পিtকা <strong>Videha</strong> Maithili Fortnightly e Magazine িরেদহ िवदेह <strong>Videha</strong> িবেদহhttp://www.videha.co.in/ मानुषीिमह संस्कृ ताम्हरेब आर पेब सभ नशीवक खेल अिछ !िदल िजनका अपनाबे हुनकेसँ ार क लेब !!िदलजे डूबलतs आशाके गाम आ ँखमs मचैल गेल !एक िचराग की ब ुझल सौ िचराग जैल गेल !!हमर आर हुनकर राह बस एतबे देर एक छल !द ुई कदम चललों की राहे बदैल गेल !!रसँ पलक भी ं गे लैत छलो !याद हुनकर आबैत अिछतँ कैन लैत छलो !!सोों की िबसैर जै हुनका !मुदा हर बेर ई फैसला बदैल लैत छलो !!अपन आगाजसँ आजू तलक िजंदगी, अिहकें याद मs गुम छल !तयों पता िकये ई एहसास अिछ, जेना की चाहत हमर कम छल !!१. ग गेश गुंजन २. ामल सुमन. ी ड◌ॉ. गंगेश गुंजन(१९४२- )। ज ान- िपलखबाड़, मध ुबनी। एम.ए. (िही),रेिडयो नाटक पर पी.एच.डी.। किव, कथाकार, नाटककार आ' उपासकार।१९६४-६५ मे पा ँच गोटेकिव-लेखक “काल पुष”(कालपुष अथा र्त् आब गीर्य भास कुमार चौधरी, ी गंगेश गुजन, ीसाकेतान, आब गीर्य ी बालेर तथा गौरीका चौधरीका, आब गीर्य) नामसँ सािदत करैतमैिथलीक थम नवलेखनक अिनयिमतकालीन पिका “अनामा”-जकर ई नाम साकेतानजी ारा देलगेल छल आऽ बाकी चा गोटे ारा अिभिहत भेल छल- छपल छल। ओिह समयमे ई यास तािहसमयक यथािितवादी मैिथलीमे पैघ द ुाहस मानल गेलैक। फणीरनाथ “रे” जी अनामाक लोकाप र्णकरैत काल कहलि, “ िकछु िछनार छौरा सभक ई सािहिक यास अनामा भावी मैिथली लेखनमेयुगचेतनाक जरी अभवक बाट खोलत आऽ आधिनक ु बनाओत”। “िकछु िछनार छौरा सभक” रेजीकअपन अाज छलि बजबाक, जे हुनकर समे रहल आऽ सुन अिछ, तकरा एकर ना आऽ रसब ूझल हेतैक। ओना “अनामा”क कालपुष लोकिन को पमे सािहिक मा मया र्दाक ित अवहेलनावा ितरार निह कए रहिथ। एकाध िटणीमे मैिथलीक पुरानपंथी कािचक ित कितपय मुखर68

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