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Videha ‘िवदेह’

Videha_01_11_2008_Tirhuta

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<strong>Videha</strong> <strong>‘िवदेह’</strong> थम मैिथली पािक्षक ई पिका १ नवम्बर अक्टूबर २००८ (वषर् १ मास ११ अंक२१) িরেদহ' পািkক পিtকা <strong>Videha</strong> Maithili Fortnightly e Magazine িরেদহ िवदेह <strong>Videha</strong> িবেদহhttp://www.videha.co.in/ मानुषीिमह संस्कृ ताम्द ुइ एक बेर पािन दै मिल मिल कात पसौलि ग ूड़◌ा।धड़ि◌ एक िवछलि पुिन अगुतैला सह-सह कर इछ स ूड़◌ा॥(किववर जीवन झा रचनावली, प ृ-९९)कीितर्पुष जीवन झाक नाटकािदक वैिशष् एिह िवषयकेँ लऽ कए अिछ जे िमिथला ंचलकसामािजक एव ं सा ंृितक जीवनक िचणक ममे वैवािहक अवसरपर होम आिदकवाक िनिम लावा, जारिन, धान, घी, जल, कुश, आिग आिदक िचण सामवतीपुनजर्मे कयलिन अिछ। जिटलकेँ सारत आज्ञा दैत छिथन:लावा जारिन धान िधउ जल कुश िवर आिग।माङव पर सित करह सब पुरिहत स लािग॥(सामवती पुनजर्, प ृ-४७)वैवािहक िविधमे लौिकक एव ं वैिदक द ुन ू रीितक पिरपालन कयल गेल अिछ एिहनाटकात। चतुथीर्क िविध स होइछ संगिह संग भार-दोरक चचा र् सेहोनाटककार कयलिन अिछ।अक्षर पुष जीवन झा िमिथला ंचलक सामािजक जीवनक िचण अ कुशलताक संगकयलिन अिछ। सामवती पुनजर् एव ं नम र्दा सागर सकमे सामािजक रीित नीितक चचा र्करैत नाकार जािह वैवािहक थाक उेख कयलिन अिछ से अ ाचीन परराअिछ। िमिथला ंचलमे एिह कारक था एव ं पररा चिलत अिछ जे वैवािहकअवसरपर वर एव ं का पक्षक घटक पिजआड़क िमलान होइछ, जािहमे पया र् टाकाकयोजन पड़◌ैछ जािहसँ िववाहक उिचत ब कयल जाऽ सकय। सामवती पुनजर्एिह संगक िवेषण प ूव र्मे कयल गेल अिछ। नम र्दा सागर सकमे सेहो एिह िितकिचण भेल अिछ। घटकराज नम र्दाक िववाहाथ र् ओ सागरक ओतय ुत होइत छिथतँ सामािजक एव ं सा ंृितक प ृभूिममे एिह परराक िनवाह र् कोना करैत छिथ तकरअवलोकन तँ क, “भौजी! एहना ठाम घटक जे हयत से लगले कोना िवचारदेत? पिजआड़केँ जे इा होइ से बिझ ू लै जाउ”। (किववर जीवन झारचनावली, प ृ-९७)।सामािजक वाकेँ सुदृढ़ बनयबामे आिथ र्क िित दृढ़ता अ योजनीय ब ुझनाजाइछ। िव िवहीन िक सामािजक जीवनमे को म ू निह रिह जाइछ।अतएव जािह समाजक आिथ र्क जीवन जतेक सबल रहत ओ उितक पथपर असर39

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