Videha ‘िवदेह’
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Videha ‘िवदेह’ थम मैिथली पािक्षक ई पिका १ नवम्बर अक्टूबर २००८ (वषर् १ मास ११ अंक२१) িরেদহ' পািkক পিtকা Videha Maithili Fortnightly e Magazine িরেদহ िवदेह Videha িবেদহhttp://www.videha.co.in/ मानुषीिमह संस्कृ ताम्जा ँतक द ुन ू पाक बीचमे दािल । मुदा से भेलैक निह, काश झा आ ँकड़ जका ँअड़ले रिह गेल । क्षक गुी लािधक’ नाटक देखैत रहलाह । मुदा, जत’हँस’क अवसर छलैक ओत’ हँसबो कएलाह ।नाटक समा भेलाक बाद काश द ू श कहबाक हेतु हमरा म ंच पर बजा लेलक ।ओ िकएक हमरा बजौलक तकर अमान एिह पमे लगौिलऎक – ाय: नाटक मे कएलगेल िकछु फेर-बदलक मादे िकछु कहताह । मुदा तािह संगमे हम िकछु किह नइसकिलऎक । कारण, क्षक हमर मुँह ब क’ दे छल । तेँ हम ई बातकहबाक लेल बा भ’ गेल छलहु ँ जे द ुलहन वही जो िपया मन भाए अथा र्त नाटकवएह नीक वा िनदेर्शक वएह नीक जकरा क्षक गीरता सँ देखलक आ ब ुझलक ।एतेक कहलाक बाद ओ राम गोपाल बजाज जी केँ बजा लेलकिन । हुनका म ंचपरबजएबाक द ूटा कारण भ’ सकैत अिछ – पिहल, ओ भारतीय र ंगम ंचक एकटा िदजर ंगकमीर् छिथ जे िमिथला ंचलक सप ूत छिथ आ दोसर, पिहल बेर िनदेर्शनक मेआयल छल तेँ हुनक आशीवा र्द काशक लेल आवक छलैक । तेँ बजाजजी म ंचपरअएलाह आ हमर बातक समथ र्न करैत कहलिथन – मलंिगयाजी जे बात कहलिन अिछतािहसँ हम सहमत छी । काश केँ जखन दश र्के सिटिफकेट र् दान क’ देलकै तखनहम ओिहपर हाक्षर नइ किरऎ से उिचत नइ होएत ।एिह ुित के देखलाक बाद िहीक युवा आ संवेदनशील र ंगदृ ि रखिनहार र ंगसमीक्षक संगम पाे जनसा में िलख रहिथ -... म ंच पर ये सभी पा चिर के कई बारीक िवासों के साथ िदखाई देते हैं। उनके भदेस में कही ं भी कुछ बनाबटी नही ं लगता । और यही वजह है िककथावु में िितया ँ कई बार दोहराई जाकर भी अपनी रोचकता नही ं खोती ं ।म ंच पर पीछे की ओर दाएँ मिदर ं का चब ूतरा है । बाई ं ओर एक प ूरा का प ूरा व ृक्ष,और चब ूतरा एक प ूरा पिरवेश बनाते हैं । इस पिरवेश में साध ु की पीता ंबरीवेशभूषा एक िदलच कं ा बनाती है” ।संगम पाेक उपयु र् कथन िनित पे काशक ना िनदेर्शक संग ओकर म ंचपिरकना आ वस् िवासक दृ िक सेहो मजब ूती दान करैत छैक ।2005 ई. मे ाि फाउेशन, िदी हमरा बोध सािह सान दे छल, जेकलकामे दान कएल गेल । उ सानक अवसर पर ड◌ॉ. उदय नारायण िसंह‘निचकेता’ ारा रिचत एक छ्ल राजा नामक नाटकक म ंचन कोिकल म ंच, कोलकाता ाराकएल गेल छल । हमरा बगलमे बैसिल हमर पी िजनका साक्षर मा कहल जासकैए पिछ ू बैसलीह32
Videha ‘िवदेह’ थम मैिथली पािक्षक ई पिका १ नवम्बर अक्टूबर २००८ (वषर् १ मास ११ अंक२१) িরেদহ' পািkক পিtকা Videha Maithili Fortnightly e Magazine িরেদহ िवदेह Videha িবেদহhttp://www.videha.co.in/ मानुषीिमह संस्कृ ताम्“कखन नाटक समा होएतैक” ?एिहपर हम कहिलएिन जे एक चौथाई बा ँकी अिछ । अवलोकनज थकान सँअप-अप बािज उठलीहओ“एह, तखन तँ आधा घंटा सँ बेिसए बैस’ पड़त” ।आब को क्षकक मुँहसँिच लगबैत अिछ ।िनकलल “बैस’ पड़त” श नाटक दश र्नपर एकटा पैघइएह सान 2007 मे मयान िम केँ भेटलिन । ओिह सानक अवसरपर ड◌ॉ.निचकेता ारा रिचत नायकक नाम जीवन, एक छल राजा , रामलीला, ावतर्न आिदमेसँ को एकटा नाटकक म ंचन होएबाक चाही से िवचार कएल गेल छल । संगिह ानबदिलक’ िदी पर मोहर लािग गेल छल । उ आयोजनक सूण र् अिभभारा काशच झा केँ भेटल छलैक । तेँ ओ निचकेताक सभ नाटक म ंगौलक । गीरता सँपढलक आ अंतमे एक छल राजापर आिबक’ केित भ’ गेल ।निचकेताक जतेक नाटक छैक ओिहमे सँ सभसँ नीक नाटक एक छल राजा अिछ जेाय: 1970 क दसकमे कािशत भेल रहैक । एकरा जँ एना ब ूझी तँ किह सकैतछी जे जिहया काश जों निह ले होयत तिहए ई नाटक कािशत भेल रहैक। तेँ जतेक जे एिह नाटकक मादे कािशत भेल छल होएतैक तािहसँ ओ पिरिचतनिह छल । तथािप ओिहमे सँ एक छल राजा केँ चूिन लेलक से ओकर िनदेर्शकीयदृ िक माण दैत छैक । कारण, िनदेर्शक वाे नाटक चयन एकटा अहम मुारखैत छैक ।जँ स पुछल जाए तँ ओ नाटक काश च झाक हेतु एकटा चुती भरल काजछलैक । एखन धिर जतेक िनदेर्शक ओकरा ुत कए छल ओकरा कओमा आप ूण िवराम र् सिहत म ंचपर उतािर दैत छल तेँ क्षककेँ पुछ’ पड़◌ैत छलैक जे आबकतेक नाटक बा ँकी अिछ । एहन िित उ होएबाक कारणपर िवचार करबासँपिह हमरा नाटक कथानकपर िवचार सेहो कर’ पड़त ।एिह नाटकमे राजा साहेब नामक एकटा जमीार अिछ जकर जमीारी पुखे र्क समयसँधीरे-धीरे कमल जाइत छै । राजा साहेब लग आिबक’ िवपता पराकाापर पहु ँचजाइत छै । कजर्क बोझ ततेक बिढ जाइत छै जकरा सधाएब मिश्कल भ’जाइत छैक । फजूल खचीर् आ िवलािसताक कारँ एिह िितमे पहु ँचब एकटा िनयितछैक । फेर ओही जमीारीमे पलल राजा साहेबक िपताक अवैध संतान धिनकलालशहर जाइत अिछ । ओिहठाम अपन लगन आ पिरमसँ काफी धपाजर्न करैत अिछ33
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<strong>Videha</strong> <strong>‘िवदेह’</strong> थम मैिथली पािक्षक ई पिका १ नवम्बर अक्टूबर २००८ (वषर् १ मास ११ अंक२१) িরেদহ' পািkক পিtকা <strong>Videha</strong> Maithili Fortnightly e Magazine িরেদহ िवदेह <strong>Videha</strong> িবেদহhttp://www.videha.co.in/ मानुषीिमह संस्कृ ताम्जा ँतक द ुन ू पाक बीचमे दािल । मुदा से भेलैक निह, काश झा आ ँकड़ जका ँअड़ले रिह गेल । क्षक गुी लािधक’ नाटक देखैत रहलाह । मुदा, जत’हँस’क अवसर छलैक ओत’ हँसबो कएलाह ।नाटक समा भेलाक बाद काश द ू श कहबाक हेतु हमरा म ंच पर बजा लेलक ।ओ िकएक हमरा बजौलक तकर अमान एिह पमे लगौिलऎक – ाय: नाटक मे कएलगेल िकछु फेर-बदलक मादे िकछु कहताह । मुदा तािह संगमे हम िकछु किह नइसकिलऎक । कारण, क्षक हमर मुँह ब क’ दे छल । तेँ हम ई बातकहबाक लेल बा भ’ गेल छलहु ँ जे द ुलहन वही जो िपया मन भाए अथा र्त नाटकवएह नीक वा िनदेर्शक वएह नीक जकरा क्षक गीरता सँ देखलक आ ब ुझलक ।एतेक कहलाक बाद ओ राम गोपाल बजाज जी केँ बजा लेलकिन । हुनका म ंचपरबजएबाक द ूटा कारण भ’ सकैत अिछ – पिहल, ओ भारतीय र ंगम ंचक एकटा िदजर ंगकमीर् छिथ जे िमिथला ंचलक सप ूत छिथ आ दोसर, पिहल बेर िनदेर्शनक मेआयल छल तेँ हुनक आशीवा र्द काशक लेल आवक छलैक । तेँ बजाजजी म ंचपरअएलाह आ हमर बातक समथ र्न करैत कहलिथन – मलंिगयाजी जे बात कहलिन अिछतािहसँ हम सहमत छी । काश केँ जखन दश र्के सिटिफकेट र् दान क’ देलकै तखनहम ओिहपर हाक्षर नइ किरऎ से उिचत नइ होएत ।एिह ुित के देखलाक बाद िहीक युवा आ संवेदनशील र ंगदृ ि रखिनहार र ंगसमीक्षक संगम पाे जनसा में िलख रहिथ -... म ंच पर ये सभी पा चिर के कई बारीक िवासों के साथ िदखाई देते हैं। उनके भदेस में कही ं भी कुछ बनाबटी नही ं लगता । और यही वजह है िककथावु में िितया ँ कई बार दोहराई जाकर भी अपनी रोचकता नही ं खोती ं ।म ंच पर पीछे की ओर दाएँ मिदर ं का चब ूतरा है । बाई ं ओर एक प ूरा का प ूरा व ृक्ष,और चब ूतरा एक प ूरा पिरवेश बनाते हैं । इस पिरवेश में साध ु की पीता ंबरीवेशभूषा एक िदलच कं ा बनाती है” ।संगम पाेक उपयु र् कथन िनित पे काशक ना िनदेर्शक संग ओकर म ंचपिरकना आ वस् िवासक दृ िक सेहो मजब ूती दान करैत छैक ।2005 ई. मे ाि फाउेशन, िदी हमरा बोध सािह सान दे छल, जेकलकामे दान कएल गेल । उ सानक अवसर पर ड◌ॉ. उदय नारायण िसंह‘निचकेता’ ारा रिचत एक छ्ल राजा नामक नाटकक म ंचन कोिकल म ंच, कोलकाता ाराकएल गेल छल । हमरा बगलमे बैसिल हमर पी िजनका साक्षर मा कहल जासकैए पिछ ू बैसलीह32