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िव दे ह िवदेह Videha িবেদহ िवदेह

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<strong>िव</strong> <strong>दे</strong> <strong>ह</strong> <strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong> <strong>Videha</strong> <strong>িবেদহ</strong> <strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong> थम मैिथली पािक्षक ई पिका <strong>Videha</strong> Ist Maithili Fortnightly e Magazine <strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong> थम मैिथली पािक्षक '<strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong>''<strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong>' ५० म अंक १५ जनबरी २०१० (वषर् ३ मास २५ अंक ५०)http://www.videha.co.in/ मानुषीिम<strong>ह</strong> संस्कृ ताम्योग् यता, िमिथलामे कीतर्िनञाक परपरा, िमिथलामे नाटकक परपराक अभाव, कीतर्िनञा सं कृत नाटक िथकतथा एकर नटुआक अयोग् यता आिद <strong>िव</strong>षय पर काश <strong>दे</strong>लिन।एि<strong>ह</strong> संगमे <strong>ह</strong>ुनक मा यता छलिन, जे ई नेपालक जगाओल धनरािश िथक। इित<strong>ह</strong>ास बुझबाक <strong>ह</strong>ेतु बड़ त<strong>ह</strong>मेजाय पड़त। <strong>ह</strong>ुनक कथन छलिन जे इित<strong>ह</strong>ासकारकेँ इमानदार आ िन पक्ष <strong>ह</strong>ोयब परमाव यक अिछ। रमानाथझा वाज ए क जरभेिटव इमैजनेिटव ि<strong>ह</strong> टोिरयन।उपयुर्क् त पिरे यमे मैिथली आलोचक लोकिन दू भागमे <strong>िव</strong>भक् त भऽ गेला<strong>ह</strong>1 िकछु वषर्क प चात् ोफेसरेमशंकर िसं<strong>ह</strong> (1942) मैिथली नाटक ओ रंगमंच (1978) एक नव िब दु िदस संकेत कयलिन जे ई नेकीर्िनञा नाटक िथक ने कीतर्िनञा नाच, युत एि<strong>ह</strong> सब नाटकािदककेँ ओ लीला नाटक क<strong>ह</strong>लिन। ोफेसरिसं<strong>ह</strong> एि<strong>ह</strong> िदशामे <strong>िव</strong>चार करबाक एक नव िदशाक बोध करौलिन जे <strong>िव</strong>चारणीय िथक।आ दोलनक सजग <strong>ह</strong>रीअनुस धानोर एक नव वृिक जागरण <strong>ह</strong>ुनक मित कमे भेलिन जे मैिथलीक गौरव–गािरमाकैँ वर्मानपिरे यमे जागृत करबाक िनिम ओ रचना मक आ आ दोलना मक मागर्क अनुसरन कयलिन। एि<strong>ह</strong> लेल ओअकमर् य िनिय, सुसुत, धािमर्क करता, रुिढ़ त जीवनक अ धकूपमे डूबल समाजमे नवजीवनक संचारकरबाक <strong>ह</strong>ेतु जनजागरणक अिभयानक सूपात कयलिन जे िमिथलाक सामािजक, सां कृितक एवं साि<strong>ह</strong>ियकजीवनमे नव चेतना अनबाक <strong>ह</strong>ेतु ओ रचनात् मक आ आ दोलना मक रूख अिख्तयार कयलिन जकर भाविमिथलावासी पर पड़ल। <strong>ह</strong>ुनक आ दोलनकारी वरूप पि<strong>ह</strong>ल पिरचय भेटैछ जे साि<strong>ह</strong> यक समृशाली पर पराकेँजनमानसकेँ अवगत करयबाक <strong>ह</strong>ेतु ओ इला<strong>ह</strong>ाबाद आ िद लीमे दुइ बेर अित उ साि<strong>ह</strong>त भऽ पु तक दशर्नीकआयोजन कयलिन। साि<strong>ह</strong> य अका<strong>दे</strong>मीक सामा य पिरषदक सद यक मनोयननक पात् अपन मातृभाषाकसाि<strong>ह</strong>ियक परपरासँ अय भाषाभाषीकेँ एकर म<strong>ह</strong>वसँ अवगत करयबाक िनिम ओ संधषर् करब ार भकयलिन। <strong>ह</strong>ुनक एि<strong>ह</strong> सकारा मक आ दोलनकेँ मूर् रूप दान करबामे िमिथलाचल आ वासी मातृभाषानुरागीसं थािद अपिरिमत स<strong>ह</strong>योग भेटलिन जकर एतय पुनराख्यानक योजन नि<strong>ह</strong>। एि<strong>ह</strong> आ दोलन मे मा ि<strong>ह</strong>नकेनि<strong>ह</strong>, युत सम त मैिथली भाषी जनमानसक स<strong>ह</strong>योगकेँ अवीकारल नि<strong>ह</strong> जा सकैछ जकर पिरणाम भेलभारतक सवच् च साि<strong>ह</strong>ियक सं था नेशनल लेटसर् ऐकेडमी अथत् साि<strong>ह</strong> य अका<strong>दे</strong>मी ारा एि<strong>ह</strong> भाषा साि<strong>ह</strong>ियकपर परासँ अवगत भऽ मा यता ा त भेलैक।िब<strong>ह</strong>ार एवं के सरकारक उदासीनताक कारणेँ ई भाषा सवर्था उपेिक्षत <strong>दे</strong>िख <strong>ह</strong>ुनका <strong>ह</strong>ृदयक आोश भेलिनआ ओ क<strong>िव</strong>वर सीताराम झा (1891–1975)क िन न थ पंिक्तसँ अितशय भा<strong>िव</strong>त भेला<strong>ह</strong>:अिछ सलाइ मे आिग, बरत की िबना रगड़ने।पायब िनज अिधकार, कत<strong>ह</strong>ुँ की िबना झगड़ने।।83

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