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िव दे ह िवदेह Videha িবেদহ िवदेह

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<strong>िव</strong> <strong>दे</strong> <strong>ह</strong> <strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong> <strong>Videha</strong> <strong>িবেদহ</strong> <strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong> थम मैिथली पािक्षक ई पिका <strong>Videha</strong> Ist Maithili Fortnightly e Magazine <strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong> थम मैिथली पािक्षक '<strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong>''<strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong>' ५० म अंक १५ जनबरी २०१० (वषर् ३ मास २५ अंक ५०)http://www.videha.co.in/ मानुषीिम<strong>ह</strong> संस्कृ ताम्वै<strong>दे</strong><strong>ह</strong>ी सिमित ारा आयोिजत थम अिखल भारतीय लेंखक समेलनक अवसर कािशत रचना सं<strong>ह</strong>मे मैिथलीइित<strong>ह</strong>ास स ब धी िकछु सम या िदस जनमानसक संगि<strong>ह</strong> बु वगर्क यानाकिषर्त कयलिन जे िदशा बोधकरबैछ जे जाधिर उपयुर्क् त सम यािदक समाधान नि<strong>ह</strong> <strong>ह</strong>ोयत ताधिर इए<strong>ह</strong> िथित र<strong>ह</strong>ता उपयुर्क् त अवसर परअपन अ यक्षीय भाषणमे नाय साि<strong>ह</strong> यक भ<strong>िव</strong> य पर काश दऽ कए कितपय नव–िब दुक संकेत <strong>दे</strong>लिन आजोर <strong>दे</strong>लिन जे एकरे मा यमे मैिथलीक भ<strong>िव</strong> य सुरिक्षत रि<strong>ह</strong> सकैछ जे <strong>ह</strong>ुनक आलोचना मक वृिक संकेतकरैछ।ि<strong>ह</strong>नक सम उपल ध आलेखक अनुशीलनसँ आब बोध <strong>ह</strong>ोइछ जे ओ मैिथल सं कृित, साि<strong>ह</strong>ियक पर पराकेँअक्षुण रखबाक िदशा–बोध करौलिन। एि<strong>ह</strong> संगमे <strong>ह</strong>ुनक अवधारणा छलिन जे भेष–भूषा, भाव–भाषा, कला–कौशल, िच–कला–संगीतकेँ उार करबाक योजन अिछ। एि<strong>ह</strong> उे यक पूयथर् अपन आलेखािदमे <strong>िव</strong> तारपूवर्क <strong>िव</strong>चार कयलिन आ संकेत <strong>दे</strong>लिन जे युवा पीढ़ीकेँ असर भऽ कायर् करबाक योजन अिछ। <strong>ह</strong>ुनकमा यता छलिन जे मैिथली नाटक आ रंगमंचक मा यमे एकर भ<strong>िव</strong> यकेँ सुिनित कयल जा सकैछ। नायसाि<strong>ह</strong> य जी<strong>िव</strong>त र<strong>ह</strong>ल–पढ़बाक ओ सुतबाक एवं <strong>दे</strong>खबाक ियामे सजीवता छैक, मूतर्मय व तुकेँ उपिथतकरबाक क्षमता छैक तथा अिभनयमे सौ दयर् ओ कलाक वा त<strong>िव</strong>तकता, मनु यता एवं स यता छैक, सेसाि<strong>ह</strong>तयक अ याय <strong>िव</strong>धामे भेटब असभव छैक।बीसम शतादीमे मैिथली साि<strong>ह</strong> यमे पिरवर्नक वर गुंिजत भेल तकर ओ समथर्कक रूपमे अयला<strong>ह</strong>।आधुिनक िशक्षाक चारसँ लोकक ज्ञान ओकर दृि <strong>िव</strong>किसत भेलैक तथा मातृभाषानुरागी लेखक लोकिनकलेखनी ओि<strong>ह</strong> पिरवर्नकेँ अंिकत करय लागल जे सा ि<strong>ह</strong> यमे नवीनताक संचार भेलैक। पिरवर्नक वरकमुखरताक कारण अिछ नूतन वैज्ञािनक आ<strong>िव</strong>कारक चम कार, औोिगकरणक वृि, एि<strong>ह</strong>सँ उ प न जन–जीवनक संकुलता, आिथर्क <strong>िव</strong>चारक क्षेमे माक्सर्वादक उदय, ायडक िसा त, बौिकता वृि। साि<strong>ह</strong> यकक्षेमे एकर भाव पड़ल आ पिरवर्नक वर गुंिजत भेल तकर ओ पक्षपाती र<strong>ह</strong>िथ। उपयुर्क् त पिरे यमेि<strong>ह</strong>नक सम रचनािद ि<strong>ह</strong>नका िदशाबोधक समीक्षक रूपमे मािणत कयलक।कीर्िनञा नाटकA History of Maithili Leterature क Volume–I मे िमिथलामे उपल ध नाटकािदकेँ ओ कीर्िनञानामे संबोिधत कयलिन जाि<strong>ह</strong> संगमे आपि तुत कयलिन रमानाथ झा अिभ यनाक थम अंकमे <strong>ह</strong>ुनकाारा थािपत मनक ख डन करैत ओकरा कीर्िनञा नाच क<strong>ह</strong>लिन। एि<strong>ह</strong> पर मैिथली आलोचनाक क्षेमे<strong>िव</strong>वादक एक परपराक शुरुआत भेल। ोफेसर िम <strong>ह</strong>ुनक मतक ख डन कयलिन उक् त पिकाक अिमअंकमे । त प चात् रमानाथ झा ब ध सं<strong>ह</strong> (1371 साल)मे मैिथली नाटकपर एक बृ<strong>ह</strong>त् आलोचनाकयलिन। इ<strong>ह</strong>ो कीनर्िनञा नाटक (1965) नामक एक वत पु तक अपन मतक समथर्नमे कािशतकयलिन जाि<strong>ह</strong>मे <strong>ह</strong>ुनक मतक ख डन तकर् <strong>दे</strong>लिन जे मैिथलीमे शोध कोना <strong>ह</strong>ो, इित<strong>ह</strong>ासमे पर पराक नामकरणकीर्िनञा नामक साथर्कता, नटुआ आ नटिकयामे भेद, नाच ओ नाटकक अभेद स बधी माण, नाटकश दक यापक अथर्, िमिथलामे अिभनयक पर परा, कीतर्िनञामे पाक वेश - िन मण, पाक संख् या,82

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