िव दे ह िवदेह Videha িবেদহ िवदेह

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िव दे िवदे Videha িবেদহ िवदे थम मैिथली पािक्षक ई पिका Videha Ist Maithili Fortnightly e Magazine िवदे थम मैिथली पािक्षक 'िवदे''िवदे' ५१ म अंक ०१ फरबरी २०१० (वषर् ३ मास २६ अंक ५१)http://www.videha.co.in/ मानुषीिम संस्कृ ताम्योग करैत छिथ । अंतत: ई म िनका सबक नाटकीय जीवन स’ िनकिलिगत जीवन स’ नीक जेना ओझरा जाइत छिथ । िकछु ओिना जेना िवजयतें डुलकरक चिच र्त नाटक ‘खामोश अदालत जारी ै’ मे घटैत अिछ जे सभपा ीनम मे िकछु ओिना अदालतक ा ंग रचैत छिथ आ ओ धीरे धीरे ततेक बिढजाइत अिछ जे सभ पाक िगत जीवन साम आिब जाइत छै । खैर !एि एका ंकी मे नाटककार निचकेता जी सेो नवीनक मामे य ं बजैत ब ुझाइत छिथ। एक ठाम नावीनक संवाद छिन : “आइ-काि जेन नाटक ोइत अिछ ओ लोकघर जाक’ सपक संग बा दैत अिछ । एकर को िया मोन निैत छैक। तेँ को ायी वु नि द’ पबैत अिछ आज ुक नाटक । नाकार लोकिन िकछुटाइपमे बा गेल छिथ । अपन-अपन िशिवरक । मुदा, ओ बात कबाक लेलिलखैत छिथ । केओ लाल छिथ तँ केओ पीयर, केओ प ूवीर् ावाक शौखीन छिथ तँकेओ पििम ावाक । मुदा नवीन योग ुनका लोकिनक नाटकमे िकु ँ नि भेटत।” नवीन नामक एि पाक कथन के आग ू बढबैत लेखक कैत छिथन “मरामोनमे भेल जे एकटा ओन नाटक िलखी जाि सँ नाटकक ाकरणक स ूते किट जाए।” – आ से एि ‘योग’ मे भेबे कयल अिछ । ‘योग’ नामक ई एका ंकी ओिनाभ’ गेल जेना उडैत गुीक तागा टुिट गेल ो । ओ क’ त’ जाएत से को126

िव दे िवदे Videha িবেদহ िवदे थम मैिथली पािक्षक ई पिका Videha Ist Maithili Fortnightly e Magazine िवदे थम मैिथली पािक्षक 'िवदे''िवदे' ५१ म अंक ०१ फरबरी २०१० (वषर् ३ मास २६ अंक ५१)http://www.videha.co.in/ मानुषीिम संस्कृ ताम्थाे रैत छै । ‘योग’ एका ंकी स’ की भेलै, एकर क ािपत भेलै,अिभता-अिभी ािपत भेला, काश संयोजन ािपत भेल, म ंच वा ािपतभेल वा िक भेल से देखब जरी अिछ ।ओना आइ-काि एन था ख ूब चलल अिछ जे को एकटा शव्द वा पिरिित केपकिडक सभ अिभता म ंच पर अपन पिरकना स’ कथा के आग ू बढ़◌्बैत छिथ ।तय मा एतबे रैत अिछ जे ई िया कतबा समय तक ोयत, आधा घंटा, एकघंटा वा जतेक ो । मुदा, एकरा सूण र् नाटकक संज्ञा नि देल जा सकैत अिछ। ँ, ई िया को अिभता अिभीक िशक्षणक रचना ियाक लेल उम भ’सकैत अिछ । एि स’ ुनक िनण र्यक क्षमता बढतिन, ुनका भीतर अपना आप मेिवास जगतिन, ओ अपन सकमीर्क लेल कोना सायक भ’ सकता से अभव ेतिन,एकटा कथा के दोसर कथा सँ कोना जोडता आिद आिद ।‘योग’ मे तीनटा दृ राखल गेल अिछ । पिल दृक अंत तक पा नवीनयैटा कि पबैत छिथ जे ओ एि योग मे की करता । तय ोएत अिछ जेनाटक िवषय वु भेल – म आ कथाक प रेखा मे पि िमलन ओकर बाद िवआ अंत मे फेरो िमलन । एि स’ इो एी दृ मे दश र्क के जानकारी द’ देल127

<strong>िव</strong> <strong>दे</strong> <strong>ह</strong> <strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong> <strong>Videha</strong> <strong>িবেদহ</strong> <strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong> थम मैिथली पािक्षक ई पिका <strong>Videha</strong> Ist Maithili Fortnightly e Magazine <strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong> थम मैिथली पािक्षक '<strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong>''<strong>िव</strong><strong>दे</strong><strong>ह</strong>' ५१ म अंक ०१ फरबरी २०१० (वषर् ३ मास २६ अंक ५१)http://www.videha.co.in/ मानुषीिम<strong>ह</strong> संस्कृ ताम्योग करैत छिथ । अंतत: ई म ि<strong>ह</strong>नका सब<strong>ह</strong>क नाटकीय जीवन स’ िनकिलिगत जीवन स’ नीक जेना ओझरा जाइत छिथ । िकछु ओि<strong>ह</strong>ना जेना <strong>िव</strong>जयतें डुलकरक चिच र्त नाटक ‘खामोश अदालत जारी <strong>ह</strong>ै’ मे घटैत अिछ जे सभपा ीनम मे िकछु ओि<strong>ह</strong>ना अदालतक ा ंग रचैत छिथ आ ओ धीरे धीरे ततेक बिढजाइत अिछ जे सभ पाक िगत जीवन साम आिब जाइत छै । खैर !एि<strong>ह</strong> एका ंकी मे नाटककार निचकेता जी से<strong>ह</strong>ो नवीनक मामे य ं बजैत ब ुझाइत छिथ। एक ठाम नावीनक संवाद छिन : “आइ-काि जे<strong>ह</strong>न नाटक <strong>ह</strong>ोइत अिछ ओ लोकघर जाक’ सपक संग ब<strong>ह</strong>ा दैत अिछ । एकर को िया मोन नि<strong>ह</strong> र<strong>ह</strong>ैत छैक। तेँ को ायी वु नि<strong>ह</strong> द’ पबैत अिछ आज ुक नाटक । नाकार लोकिन िकछुटाइपमे बा गेल छिथ । अपन-अपन िश<strong>िव</strong>रक । मुदा, ओ बात क<strong>ह</strong>बाक लेलिलखैत छिथ । केओ लाल छिथ तँ केओ पीयर, केओ प ूवीर् <strong>ह</strong>ावाक शौखीन छिथ तँकेओ पििम <strong>ह</strong>ावाक । मुदा नवीन योग <strong>ह</strong>ुनका लोकिनक नाटकमे िक<strong>ह</strong>ु ँ नि<strong>ह</strong> भेटत।” नवीन नामक एि<strong>ह</strong> पाक कथन के आग ू बढबैत लेखक क<strong>ह</strong>ैत छिथन “<strong>ह</strong>मरामोनमे भेल जे एकटा ओ<strong>ह</strong>न नाटक िलखी जाि<strong>ह</strong> सँ नाटकक ाकरणक स ूते किट जाए।” – आ से एि<strong>ह</strong> ‘योग’ मे भेबे कयल अिछ । ‘योग’ नामक ई एका ंकी ओि<strong>ह</strong>नाभ’ गेल जेना उडैत गुीक तागा टुिट गेल <strong>ह</strong>ो । ओ क’ त’ जाएत से को126

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