िनतनेम - Gurbanifiles.org
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कागिद कलम न िलखणहारु ॥ मंने का बिह करिन वीचारु ॥ ऐसा नामु िनरंजनु होइ ॥ जे को मंिन जाणै मिन कोइ ॥१२॥ 6 मंनै सुरित होवै मिन बुिध ॥ मंनै सगल भवण की सुिध ॥ मंनै मुिह चोटा ना खाइ ॥ मंनै जम कै सािथ न जाइ ॥ ऐसा नामु िनरंजनु होइ ॥ जे को मंिन जाणै मिन कोइ ॥१३॥ मंनै मारिग ठाक न पाइ ॥ मंनै पित िसउ परगटु जाइ ॥ मंनै मगु न चलै पंथु ॥ मंनै धरम सेती सनबंधु ॥ ऐसा नामु िनरंजनु होइ ॥ जे को मंिन जाणै मिन कोइ ॥१४॥ मंनै पाविह मोखु दुआरु ॥ मंनै परवारै साधारु ॥ मंनै तरै तारे गुरु िसख ॥ मंनै नानक भविह न िभख ॥ ऐसा नामु िनरंजनु होइ ॥ जे को मंिन जाणै मिन कोइ ॥१५॥ पंच परवाण पंच परधानु ॥ पंचे पाविह दरगिह मानु ॥ पंचे सोहिह दिर राजानु ॥ पंचा का गुरु एकु िधआनु ॥ जे को कहै करै वीचारु ॥ करते कै करणै नाही सुमारु ॥ धौलु धरमु दइआ का पूतु ॥ संतोखु थािप रिखआ िजिन सूित ॥
जे को बुझै होवै सिचआरु ॥ धवलै उपिर के ता भारु ॥ धरती होरु परै होरु होरु ॥ ितस ते भारु तलै कवणु जोरु ॥ जीअ जाित रंगा के नाव ॥ सभना िलिखआ वुड़ी कलाम ॥ एहु लेखा िलिख जाणै कोइ ॥ लेखा िलिखआ के ता होइ ॥ के ता ताणु सुआिलहु रूपु ॥ के ती दाित जाणै कौणु कू तु ॥ कीता पसाउ एको कवाउ ॥ ितस ते होए लख दरीआउ ॥ कु दरित कवण कहा वीचारु ॥ वािरआ न जावा एक वार ॥ जो तुधु भावै साई भली कार ॥ तू सदा सलामित िनरंकार ॥१६॥ 7 असंख जप असंख भाउ ॥ असंख पूजा असंख तप ताउ ॥ असंख गरंथ मुिख वेद पाठ ॥ असंख जोग मिन रहिह उदास ॥ असंख भगत गुण िगआन वीचार ॥ असंख सती असंख दातार ॥ असंख सूर मुह भख सार ॥ असंख मोिन िलव लाइ तार ॥ कु दरित कवण कहा वीचारु ॥ वािरआ न जावा एक वार ॥ जो तुधु भावै साई भली कार ॥ तू सदा सलामित िनरंकार ॥१७॥ असंख मूरख अंध घोर ॥ असंख चोर हरामखोर ॥ असंख अमर किर जािह जोर ॥ असंख गलवढ हितआ कमािह ॥ असंख पापी पापु किर जािह ॥
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कागिद कलम न िलखणहारु ॥<br />
मंने का बिह करिन वीचारु ॥<br />
ऐसा नामु िनरंजनु होइ ॥<br />
जे को मंिन जाणै मिन कोइ ॥१२॥<br />
6<br />
मंनै सुरित होवै मिन बुिध ॥<br />
मंनै सगल भवण की सुिध ॥<br />
मंनै मुिह चोटा ना खाइ ॥<br />
मंनै जम कै सािथ न जाइ ॥<br />
ऐसा नामु िनरंजनु होइ ॥<br />
जे को मंिन जाणै मिन कोइ ॥१३॥<br />
मंनै मारिग ठाक न पाइ ॥<br />
मंनै पित िसउ परगटु जाइ ॥<br />
मंनै मगु न चलै पंथु ॥<br />
मंनै धरम सेती सनबंधु ॥<br />
ऐसा नामु िनरंजनु होइ ॥<br />
जे को मंिन जाणै मिन कोइ ॥१४॥<br />
मंनै पाविह मोखु दुआरु ॥<br />
मंनै परवारै साधारु ॥<br />
मंनै तरै तारे गुरु िसख ॥<br />
मंनै नानक भविह न िभख ॥<br />
ऐसा नामु िनरंजनु होइ ॥<br />
जे को मंिन जाणै मिन कोइ ॥१५॥<br />
पंच परवाण पंच परधानु ॥<br />
पंचे पाविह दरगिह मानु ॥<br />
पंचे सोहिह दिर राजानु ॥<br />
पंचा का गुरु एकु िधआनु ॥<br />
जे को कहै करै वीचारु ॥<br />
करते कै करणै नाही सुमारु ॥<br />
धौलु धरमु दइआ का पूतु ॥<br />
संतोखु थािप रिखआ िजिन सूित ॥