िनतनेम - Gurbanifiles.org

िनतनेम - Gurbanifiles.org िनतनेम - Gurbanifiles.org

gurbanifiles.org
from gurbanifiles.org More from this publisher
04.01.2014 Views

अकाल ॥ िदआल ॥ अलेख ॥ अभेख ॥१९२॥ अनाम ॥ अकाम ॥ अगाह ॥ अढाह ॥१९३॥ अनाथे ॥ माथे ॥ अजोनी ॥ अमोनी ॥१९४॥ न रागे ॥ न रंगे ॥ न रूपे ॥ न रेखे ॥१९५॥ अकरमं ॥ अभरमं ॥ अगंजे ॥ अलेखे ॥१९६॥ 34 भुजंग यात छंद ॥ नमसतुल णामे समसतुल णासे ॥ अगंजुल अनामे समसतुल िनवासे ॥ िकामं िबभूते समसतुल सरूपे ॥ कु करमं णासी सुधरमं िबभूते ॥१९७॥ सदा सिचदानंद सं णासी ॥ करीमुल कु िनदा समसतुल िनवासी ॥ अजाइब िबभूते गजाइब गनीमे ॥ हरीअं करीअं करीमुल रहीमे ॥१९८॥ च च वरती च च भुगते ॥ सुय्मभव सुभं सरबदा सरब जुगते ॥ दुकालं णासी िदआलं सरूपे ॥ सदा अंगसंगे अभंगं िबभूते ॥१९९॥

ੴ वािहगुरू जी की फतह॥ पाितशाही १०॥ 35 त्व सािद सवये ावग सुध समूह िसधान के देिख िफिरओ घर जोग जती के ॥ सूर सुरारदन सुध सुधािदक संत समूह अनेक मती के ॥ सारे ही देस को देिख रिहओ मत कोऊ न देखीअत ानपती के ॥ ी भगवान की भाइ िपा हू ते एक रती िबनु एक रती के ॥१॥ माते मतंग जरे जर संग अनूप उतंग सुरंग सवारे ॥ कोिट तुरंग कु रंग से कू दत पउन के गउन को जात िनवारे ॥ भारी भुजान के भूप भली िबिध िनआवत सीस न जात िबचारे ॥ एते भए तु कहा भए भूपित अंत को नांगे ही पांइ पधारे ॥२॥ जीत िफरे सभ देस िदसान को बाजत ढोल िदंग नगारे ॥ गुंजत गूड़ गजान के सुंदर िहसत ही हयराज हजारे ॥ भूत भिवख भवान के भूपत कउनु गनै नह जात िबचारे ॥ ी पित ी भगवान भजे िबनु अंत कउ अंत के धाम िसधारे ॥३॥ तीरथ नान दइआ दम दान सु संजम नेम अनेक िबसेखै ॥ बेद पुरान कतेब कु रान जमीन जमान सबान के पेखै ॥ पउन अहार जती जत धार सबै सु िबचार हजार क देखै ॥ ी भगवान भजे िबनु भूपित एक रती िबनु एक न लेखै ॥४॥ सुध िसपाह दुरंत दुबाह सु सािज सनाह दुरजान दलगे ॥ भारी गुमान भरे मन म कर परबत पंख हले न हलगे ॥ तोिर अरीन मरोिर मवासन माते मतंगन मान मलगे ॥ ी पित ी भगवान िपा िबनु ितआिग जहान िनदान चलगे ॥५॥ बीर अपार बडे बिरआर अिबचारिह सार की धार भछया ॥ तोरत देस मिलद मवासन माते गजान के मान मलया ॥ गाहे गहान के तोड़न हार सु बातन ह चक चार लवया ॥

अकाल ॥ िदआल ॥<br />

अलेख ॥ अभेख ॥१९२॥<br />

अनाम ॥ अकाम ॥<br />

अगाह ॥ अढाह ॥१९३॥<br />

अनाथे ॥ माथे ॥<br />

अजोनी ॥ अमोनी ॥१९४॥<br />

न रागे ॥ न रंगे ॥<br />

न रूपे ॥ न रेखे ॥१९५॥<br />

अकरमं ॥ अभरमं ॥<br />

अगंजे ॥ अलेखे ॥१९६॥<br />

34<br />

भुजंग यात छंद ॥<br />

नमसतुल णामे समसतुल णासे ॥<br />

अगंजुल अनामे समसतुल िनवासे ॥<br />

िकामं िबभूते समसतुल सरूपे ॥<br />

कु करमं णासी सुधरमं िबभूते ॥१९७॥<br />

सदा सिचदानंद सं णासी ॥<br />

करीमुल कु िनदा समसतुल िनवासी ॥<br />

अजाइब िबभूते गजाइब गनीमे ॥<br />

हरीअं करीअं करीमुल रहीमे ॥१९८॥<br />

च च वरती च च भुगते ॥<br />

सुय्मभव सुभं सरबदा सरब जुगते ॥<br />

दुकालं णासी िदआलं सरूपे ॥<br />

सदा अंगसंगे अभंगं िबभूते ॥१९९॥

Hooray! Your file is uploaded and ready to be published.

Saved successfully!

Ooh no, something went wrong!